चौराहा पर बनी इस छोटी सी चौकी में मै खड़ी हूँ | अब अपने मम्मी पापा और कुछ लोगो के साथ मम्मी
पापा ने इसके साथ मिलके निकाला है मुझे उनके घर से ..| बहुत भीड़ है यहाँ और कुछ लोग कैमरा से मेरा
फोटो खींच रहे है | कुछ बात कर रहे है कि "इतना बड़ा अधिकारी एक छोटी सी लड़की को अगवा किये रहा एक
साल तक और किसी को कानो - कान भनक तक नही लगी | " नाम बताओ अपना ...? मैं मम्मी से
चिपकी खड़ी सबको देख ... समझने की कोशिश कर रही हूँ की ' पुलिस ' ने पूछा | मैंने मम्मी की तरफ
देखा सहमे - सहमे , तभी ' उन कुछ लोगो ' में से जो मम्मी के साथ मुझे 'छुड़ा ' लाए
यहाँ ...., एक औरत प्यार से हाथ फेर बोली मुझसे ....'बिना डरे अपना नाम और जो भी हुआ है ना
तुम्हारे साथ , सब बता दो |' रूपाली .... मैंने हलके से बोला | क्या उम्र है ? .... उन्होंने फिर पूछा ....,
'नौ साल' ,..... इस बार मम्मी ने बताया | .... मैं या मम्मी , जो जवाब देती वो उसे एक कागज़ पर
लिखने लगते | कैसे पहुंची सर के घर ? उन्होंने अब ये सवाल किया वो सब याद करके मुझे रोना आ रहा है
, लेकिन अब डर नही लग रहा , बहादुरी से मैं उन्हें सब बता रही हूँ | हम बहुत गरीब है |
मेरे पापा रणधीर , मम्मी, मैं और चार भाई -बहन सब अपना देस 'बंगाल ' को
छोड़के यहाँ बरेली आ गए |.... तभी मम्मी ने उन्हें बोला , साहब ! हम डेढ़ साल पहले यहाँ आये ,
मजदूरी करत रहे यहाँ , "ग्रीन पार्क " कॉलोनी में ...|