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वो कुछ लोग !

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वो कुछ लोग !

चौराहा पर बनी इस छोटी सी चौकी में मै खड़ी हूँ | अब अपने मम्मी पापा और कुछ लोगो के साथ मम्मी पापा ने इसके साथ मिलके निकाला है मुझे उनके घर से ..| बहुत भीड़ है यहाँ और कुछ लोग कैमरा से मेरा फोटो खींच रहे है | कुछ बात कर रहे है कि "इतना बड़ा अधिकारी एक छोटी सी लड़की को अगवा किये रहा एक साल तक और किसी को कानो - कान भनक तक नही लगी | " नाम बताओ अपना ...? मैं मम्मी से चिपकी खड़ी सबको देख ... समझने की कोशिश कर रही हूँ की ' पुलिस ' ने पूछा | मैंने मम्मी की तरफ देखा सहमे - सहमे , तभी ' उन कुछ लोगो ' में से जो मम्मी के साथ मुझे 'छुड़ा ' लाए

यहाँ ...., एक औरत प्यार से हाथ फेर बोली मुझसे ....'बिना डरे अपना नाम और जो भी हुआ है ना तुम्हारे साथ , सब बता दो |' रूपाली .... मैंने हलके से बोला | क्या उम्र है ? .... उन्होंने फिर पूछा ...., 'नौ साल' ,..... इस बार मम्मी ने बताया | .... मैं या मम्मी , जो जवाब देती वो उसे एक कागज़ पर लिखने लगते | कैसे पहुंची सर के घर ? उन्होंने अब ये सवाल किया वो सब याद करके मुझे रोना आ रहा है , लेकिन अब डर नही लग रहा , बहादुरी से मैं उन्हें सब बता रही हूँ | हम बहुत गरीब है | मेरे पापा रणधीर , मम्मी, मैं और चार भाई -बहन सब अपना देस 'बंगाल ' को छोड़के यहाँ बरेली आ गए |.... तभी मम्मी ने उन्हें बोला , साहब ! हम डेढ़ साल पहले यहाँ आये , मजदूरी करत रहे यहाँ , "ग्रीन पार्क " कॉलोनी में ...|

फिर एक दिन एक आंटी आई '..., मुझे याद आने लगा |'... खुद को बीमार बताते हुए वो मम्मी से मुझे अपने साथ रखने का कहने लगी... | 'तुम्हारी बिटिया को हम अपना बनाके रखेंगे , बस उससे थोड़ी रहत मिल जाएगी काम में मुझे ...' आंटी ने कहा मम्मी कह रही थी कि वो किसी सरकारी अफसर की बीबी है |.... मम्मी ने तो मन कर दिया लेकिन जब उन आंटी ने २००० रुपये महीना तनख्वाह देने की बात कही तो पापा तैयार हो गए | इस तरह मैं उनके घर रहने लगी | आंटी बहुत काम करवाती और गुस्से मैं बहुत मारती थी मुझे , जब भी घर से बाहर जाते सब , आंटी और उनकी एकलौती बेटी , तो मुझे घर के बाथरूम में बंद कर देते ताकि मैं रोने लगू तो बाहर आवाज़ ना जाये | काम कर कर के मेरे पैर सूजने लगे और मैं चप्पल नही पहन पाती तब ....'.. मैंने कहा तो वह खड़े कुछ लोग जिन्हे लोग 'पत्रकार कह रहे थे , ने मेरे पेरो के फोटो लेना शुरू किया | मैं रोने लग गयी , फिर मम्मी मुझे चुपाते हुई बोली ,....साहब हमने कई बार अपनी बिटिया से मिलने की कोशिश की लेकिन वो हर बार बहाना बना देती| फिर जब हमने कहा की ,, हमारी लड़की वापस कर दो | हम अब दिल्ली जाकर मजदूरी करेंगे तो सर और उनकी बीबी ने गाली गलौच करना शुरू कर दिया हमने बहुत मिन्नतें की | साहब लेकिन हामृ बेटी नही दी इन लोगो ने और साथ में धमकी देते कि अगर पुलिस के पास गए तो ठीक नही होगा | हम दिल्ली आ गए , मजबूर थे वहा कोई रोज़गार नही रह गया था हमारे लिए | लेकिन बिटिया के लिए जब तब आते और उनके पास जाकर हाथ पैर जोड़ते हम्म ... आप बताइये मैडम ! आपको कैसे पता लगा इस बंधक लड़की के बारे में इस बार ये सवाल पुलिस इंस्पेक्टर ने उनसे पुछा जो मुझे बिना डरे सब बताने को कह रही थी | वो बोली हम 'साकार ' संस्था से है , जो महिला व् बाल अधिकार पर काम करती है | मेरा नाम कमलेश है और यह मेरे सहयोगी कार्यकर्ता हसीब व् ये रोहिलखण्ड यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र है उन्होंने अपने पास खड़े साथियो कि और इशारा करते हुए पुलिस वाले को बताया | फिर बोली ये केस इन छात्रों के जरिये हमारे पास आया जो साकार के अभियान कदम बढ़ाओ के कोर ग्रुप मेंबर है | कदम बढ़ाओ अभियान के माध्यम से हमने ग्रामीण व् शहरी युवाओ को एक साथ जोड़ महिलाओ के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध मुहीम छेड़ी है |

.. फिर बोली हमे छात्रों के माध्यम से पता लगा कि ए. आर . आई . अधिकारी के पड़ोस कि एक महिला बच्ची पर हो रहे अत्याचारों से बहुत आहत है, और उसी ने इन छात्रों से संपर्क साधकर उसे छुड़ाने के लिए सहायता करने को कहा है | साथ ही महिला ने बताया कि ये बच्ची एक दो बार घर से भागने कि कोशिश कर चुकी है जिसके बाद इस अधिकारी ने अपने घर व् बहार सी सी टी वी कैमरे लगवा दिए ताकि लड़की कि हरकतों पर नजर राखी जा सके साथ ही अगर कोई बाहरी उसकी मदद करने कि कोशिश करे तो उससे भी सतर्क रहा जा सके उसके अलावा अधिकारी का एक गार्ड हमेशा घर पर पहरा भी देता है | अधिकारी इतने रसूख वाला है कि कॉलोनी के सभी लोग ये बात जानते है , बाबजूद इसके कोई खिलाफ बोलने कि हिम्मत नही जुटा रहा | सभी बाते जानने के साथ ही हमे पता लगा कि बच्ची कि माँ इस वक़्त दिल्ली से बरेली आई हुई है और अधिकारी के घर के पास ही डेरा डाले अपनी बच्ची को वापस देने कि गुहार लिए रोज़ अधिकारी के दरवाज़े के पास बैठी रोती रहती है उन मैडम कि इस बात को सुन मै याद करने लगी कि घर के अंदर से मुझे बाहर रो रही मेरी मम्मी कि आवाज़े आती और मै ,,,, बिलख -बिलख कर रोते हुए बाहर जाने क़ी कोशिशे कटी जिसके बाद आंटी ने मुझे घर में बंधना शुरू कर दिया | वो मैडम अब बोली ....''फिर हमने उस औरत से संपर्क साधा और उसे पुलिस थाने ले जाकर ऐ . आर . आई . के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने क़ी योजना बनायी | लेकिन अधिकारी के गार्ड को इस बात क़ी भनक लग गयी और उसने उस महिला को भी अपना बंधक बनाने क़ी कोशिश क़ी, क्योकि ये बच्ची अब उसके 'गले क़ी हड्डी ' थी और वो यह अच्छी तरह जानता था कि अगर केस सबके सामने आ गया तो उसके पूरे परिवार को कड़ी सज़ा कि साथ नौकरी पर भी बन सकती है | ... लेकिन हमारे सहयोगी हसीब और इन छात्रों ने भेष बदलकर उस महिला को "ग्रीन पार्क कॉलोनी " से निकाला और चौंकी चौराहा स्थित महिला थाने ले आये | उसके बाद हमे कोतवाली जाने को बोला गया और कोतवाली पहुंच कर हमे पता लगा क़ी अधिकारी केस अपने हाथो से निकलता देख बच्ची को बीसलपुर चौराहा स्थित चौकी ले आया है | जिसके बाद हम अब आपके सामने है ... आंटी क़ी सुनाई पूरी घटना कि बाद पुलिस क़ी साथ ही मुझे भी पूरी कहानी जानने को मिली क़ी आखिर ये लोग लोग कैसे मिले और आखिर क्यों सर ने मुझे खुद ही चौकी पहुचाया | उन मैडम ने अपनी बात केहि फिर सब लोग मिलकर उस अधिकारी क़े खिलाफ मुकदमा लिखने क़ी बात कहने लगे | और हर कोई पुलिस वाले उन अंकल को अपनी बात समझाता | मै वाही मम्मी क़ी गोद में बैठी सब देख रही हु पुलिस मुकदमा नही लिखना चाह रही , वो मैडम और बाकी लोग कह रहे कि रिपोर्ट तो आपको लिखने पड़ेगी | समझोता हुआ कि वो अधिकारी मेरा इलाज़ कराएँगे और साथ ही उसने सबके सामने मुझसे , मम्मी, पापा से माफ़ी मांगी | मै खुश हुई कि क्योकि मम्मी क़े पास हूँ , पापा भी पुलिस क़े सामने माफ़ी मांग कह चुके कि अब कभी अपने बच्चो से मजदूरी नही कराएँगे | अब सारे लोग साकार क़े उन कुछ लोगो को शाबाशी दे रहे थे |


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